सच्चा सुख: प्रकृति से जुड़ाव | True Joy Lies in Nature
क्या हमने कभी सोचा है कि असली सुख कहाँ छुपा है?
पेड़ों की छाँव में बैठने से जो अथाह सुख और शांति मिलती है, वह किसी महल में रहकर भी नहीं मिल सकती। नदियों के पास की शीतलता, कृत्रिम उपकरणों से उत्पन्न ठंडक से कहीं अधिक सुकून देती है। पक्षियों का मधुर स्वर किसी मनमोहक संगीत से कम नहीं होता। वृक्षों से अपने हाथों से तोड़कर खाए गए फल किसी महंगे स्वादिष्ट भोजन से भी अधिक संतोष देते हैं। आकाश में टिमटिमाते तारे हमारे द्वारा बनाए गए प्रकाश से कहीं अधिक सुंदर प्रतीत होते हैं। कभी-कभी आकाश में उभरता इंद्रधनुष किसी भी मनोरम दृश्य को पीछे छोड़ देता है। हमारे आसपास फुदकते पक्षी, और कहीं दूर से आती गायों की आवाज़ें किसी भी प्रकार के झगड़ों की आवाज़ों से बेहतर लगती हैं।
प्रकृति ने हमें सब कुछ वास्तविक और नि:स्वार्थ रूप से दिया है, फिर भी हम कृत्रिमता की ओर भाग रहे हैं। हम वह खो रहे हैं जो हमारे पास पहले से मौजूद है, और उस मिथ्या सुख की ओर दौड़ रहे हैं जो मृगतृष्णा के समान है।
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