जीवन।का सार प्रकृति है हमारी अमूल्य धरोहर प्रकृति है पर पटा नहीं क्यो इस सच से हम मनुष्य अनभिज्ञ होते रहे हमारा जीवन हि प्रकृति है हम उन नदियों को उन पेड़ोको सुरक्षित रखना चाहिए
Posts
पारंगत प्रकृति
- Get link
- X
- Other Apps
दर्द् में प्रलेप है प्रकृति निराशा में प्रेरणा है प्रकृति भय में रक्षी है प्रकृति दुर्बलता में बल देने वाली है प्रकृति व्यवधान मैं समाधान है प्रकृति रोग में पथ्य है प्रकृति अशांत मन की नीरवता है प्रकृति आत्मा के नजदीक से होकर गुजरती है प्रकृति नादान न समझ लेना प्रकृति को मन को समझ लेने मैं पारंगत है प्रकृति ©® दीक्षा
Yasodhara
- Get link
- X
- Other Apps
समय की मार और बिपरीत परिस्थिति या तो इंसान को शारीरिक या मानसिक रूप से शरीर और मन को जर्ज़र करके एक दिन मौत के मुह मे गिरा देती है या फिर इतना कठोर बना देती है की प्रभाबित इंसान चाहे वह महिला हो या पुरुष आत्मा बिहीन हो जाता है फिर वह मानवीय भावनाओं से परे हो जाता इस कहनी मे भी यशोधरा का बचपन।से लेकर उसकी अधेड अवस्था उसकी बीमारी और जीबन के सुखद और दुखद पलो .का वर्णन है कहा जाता है स्त्री जाति का हिर्दय बहुत कोमल होता है दया ममता उनमे कूट कूट कर भरी रहती है और ये सच भी है कोई बिरली हि महिला होगी जिसमे दया ममता ना हो अन्यथा स्त्रियां अगर किसी से बहस कर रही हों और बहस करते करते दो चार बार रो ना दे येसा बहुत कम हि होता है स्त्री जाति ईस्वर दवरा बनाई गई एक कोमल रचना है .या एक ऐसा मन जो ममता से परिपूर्ण है बिकट परिस्थती मे भी ...
स्त्री
- Get link
- X
- Other Apps
हम हमेशा यह सोचते है की आगे सब ठीक हि होगा खासकर एक स्त्री वह इतनी भोली होती है कु लाख मुसीबत आ जाए कुछ भी हो जाते एक दो घंटे के बाद नॉर्मल बिहेब करती है मानो कुछ हुआ हि ना हो पता नही स्त्री मन इतना कोमल क्यो बनाया है ईस्वर ने बेचारी अपने पूरे जीवन मे वह केवल एक सोच के साथ जीती है की कभी ना कभी तो सब ठीक होगा पर होता कुछ भी ठीक नहीं है और आखिर मे उसका जीवन ख़त्म हो जाता है जुझते जुझते ©® deeksha
निस्तब्ध प्रकृति
- Get link
- X
- Other Apps
अंतः करण शुद्ध है उसका पूर्ण रूप से सब कुछ सहने का सामर्थ है यही उसके जीवन का अर्थ है निस्तब्ध मूक दर्शक बनी परन्तु समझती है सबकुछ सोचती होगी क्या अर्थ कुछ कहने है अगर प्रकृति भी निष्कासित कर दे गर हमारे द्वारा फैलाए गए अपशिष्ट को? क्या करेंगे? बस निष्ठुर नही है इसका प्रमाण निरंतर देती रहती है हमारे द्वार हृदय को आहत कर देने वाले कृत्यों को सहती रहती है किंतु सच है जो सबकुछ समाहित करें उसकी कद्र नहीं की जाती और अक्सर मोतियों को समुंदर की राह दिखा दी जाती और प्रकृति फिर भी फिर भी अपनी धुन में है चलो ठीक ही है वो सोचती है सबकुछ उसको भाया निश्चिंत है एकदम नही सोचती क्या खोया क्या पाया दीक्षा
जीवि त प्रकृति है
- Get link
- X
- Other Apps
ईर्ष्या का भाव कलयुग है, सदभाव प्रकृति है कांति हीन कलयुग है, अलंकृत प्रकृति है युद्ध का भाव कलयुग है,शांति प्रकृति है लालच कलयुग है, दान प्रकृति है वि षाद कलयुग है अनंत खुशी प्रकृति है वज्राघात कलयुग है ,मरहम प्रकृति है मोह कलयुग है, बंधनमुक्त प्रकृति है द्वेष कलयुग है, समभाव प्रकृति है शीघ्र अंत होगा कलयुग का, अनंत काल तक जीवि त प्रकृति है ©® deeksha
हम मसरूफ रहे — और वक्त चुपचाप रंग बदलता गया | While We Stayed Busy — Time Quietly Changed Its Colors
- Get link
- X
- Other Apps
कभी-कभी ज़िंदगी की रफ़्तार इतनी तेज़ होती है कि हमें एहसास ही नहीं होता कि वक्त और लोग कैसे बदलते जा रहे हैं। यह शायरी उसी भावना को बयाँ करती है — जब हम जीवन रंगीन बनाने में लगे रहते हैं, और वक्त चुपचाप अपने रंग बदल जाता है। हम सुबह से चलते गये, वो शाम से ढलते गये, हम मसरूफ थे हयाते रंग भरने में, और वो आहिस्ता आहिस्ता, रंग बदलते गये। यह शायरी सिर्फ अल्फ़ाज़ नहीं, बल्कि एक अहसास है — जो हर किसी ने कभी न कभी महसूस किया है। हम ज़िंदगी में खोए रहते हैं, और वहीं वक्त चुपचाप हमें बदलता चला जाता है — हमारे आसपास के रिश्ते, मौक़े और भावनाएँ। क्या कभी आपको भी लगा कि आप ज़िंदगी में मसरूफ थे, और वक्त अपना रंग बदल गया? नीचे कमेंट में अपनी राय या कोई दिल छू लेने वाली शायरी ज़रूर शेयर करें।
प्रकृति मुझसे मेरा तम ले गई — और नव चेतना दे गई | Nature Took Away My Darkness — And Gifted Me New Light
- Get link
- X
- Other Apps
प्रकृति सिर्फ दृश्य सौंदर्य नहीं, बल्कि हमारी आत्मा को शुद्ध करने वाली शक्ति है। यह कविता उसी अद्भुत प्रक्रिया को दर्शाती है — जहाँ प्रकृति हमारे तम, दुख, और दुविधा को हरकर नव ऊर्जा, भक्ति और आशा से भर देती है। नव लय दी नव ताल दी नव छंद दे गई प्रकृति मुझसे मेरे सारे तम ले गई नव स्वर दिए नव वर दिए नव मंत्र दे गई प्रकृति मुझसे मेरे कलुष ले गई नव शक्ति दी नव भक्ति दी नव मर्म दे गई प्रकृति मुझसे मेरी दुविधा ले गई नव आशा दी नव परिभाषा दी नव तन्मयता दे गई प्रकृति मुझसे मेरी निराशा ले गई \ क्या कभी आपने महसूस किया है कि प्रकृति ने आपको फिर से जीवित कर दिया हो? अपना अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें —
अगर दिखे कोई दुख में — तो तुम इंसानियत निभा जाना |Be the Light — When Someone Loses Their Way
- Get link
- X
- Other Apps
इस तेज़ भागती दुनिया में जहाँ स्वार्थ और संवेदनहीनता बढ़ती जा रही है, ऐसे समय में हमें फिर से याद दिलाने की ज़रूरत है — इंसानियत का क्या मतलब है। यह कविता उन्हीं मूल्यों को उजागर करती है — जहाँ राह भटके को दिशा, भूखे को अन्न, दुखी को सहारा और अन्याय के खिलाफ आवाज़ दी जाए। पथ भूल रहा गर राह में कोई तुम सच्चे प्रणेता बन जाना गर दिखे कोई राह में भूखा तुम मुँह का निवाला तज जाना अगर दिखे कोई निरपराध कष्ट में रक्षा में उसकी अड़ जाना अन्याय को होते देख तुम कभी मुँह फेर के मत जाना गर निराश हो जीवन से कोई तुम नई जिजीविषा भर आना || अगर यह कविता आपके दिल को छू गई हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करें। नीचे कमेंट में बताएं — आपने आखिरी बार किसी की मदद कब की थी?
जब वक्त मेहरबान हो — तो गधा भी पहलवान बन जाता है! | When Luck Smiles — Even a Donkey Becomes a Wrestler!
- Get link
- X
- Other Apps
हमारे बड़े-बुज़ुर्ग अक्सर ऐसी कहावतें बोल जाते हैं, जिनका असली मतलब हमें वक्त के साथ समझ आता है। एक ऐसी ही कहावत — "जब रब मेहरबान होता है तो गधा भी पहलवान होता है" — जिसे हमने पहले मजाक समझा, अब ज़िंदगी के अनुभवों से उसकी गहराई समझ पाई हूँ। कभी सोचा था कि गधा पहलवान कैसे बन सकता है? पर अब समझ आया कि हमारे बुजुर्गों की ये बात सीधी नहीं थी — इसमें छिपा था गहरा जीवन का सच। दरअसल, ये कहावत उन लोगों पर फिट बैठती है जो समय की रहमत से ऊँचाईयों पर पहुंच जाते हैं — बिना किसी विशेष प्रयास के। वक्त जब मेहरबान होता है, तब काबिलियत से ज़्यादा किस्मत काम करती है। ऐसे में जो 'गधा' था — यानी जिसकी पहचान साधारण थी — वह भी 'पहलवान' बन जाता है। पर वक्त हमेशा एक-सा नहीं रहता। जैसे ही किस्मत की हवाएं रुकती हैं, वैसे ही उस 'पहलवान' की असलियत सामने आने लगती है। गधे को लगता है कि वो हाथी बन गया है, पर जब वक्त करवट लेता है — उसे उसकी असलियत का एहसास होता है। और तब उसे फिर से उसकी पुरानी जगह पर — ढेर सारा बोझ लादकर — वापस भेज दिया जाता है। वो सपनों से जागता है और समझता है...
प्रकृति से जीवन के अनमोल सबक |Nature’s Teachings: Life Lessons from the Elements
- Get link
- X
- Other Apps
क्या आपने कभी महसूस किया है कि प्रकृति बिना बोले हमें कितनी बड़ी सीखें दे जाती है ? हर तत्व – पहाड़, पेड़, सूरज, नदी, आकाश, धरती, हवा – हमें सिखाते हैं मौन, माफ़ी, परोपकार, सहनशीलता और प्रेम जैसे जीवन के मूल मंत्र। इस कविता में प्रकृति के इन अद्भुत संदेशों को महसूस करें। 🌿 प्रकृति से सीखें जीवन जीने की कला मौन रहकर देखना , और माफ़ करना – पहाड़ों से सीखो यह धैर्य और सहनशीलता का भाव। सदैव बाँटना और परोपकारी रहना , हमें पेड़ सिखाते हैं, हम अगर उन पर पत्थर भी मारें, तो भी वे फल ही बरसाते हैं। समान भाव से देखना , सूरज सिखाता है – जो बिना भेदभाव सब पर चमकता है। शांत रहना और अपनी धुन में बहना , सीखें नदियों से, जो चुपचाप बहती हैं, मगर रास्ता खुद बनाती हैं। विस्तार की भावना , आकाश सिखाता है – जो सबको समेटे रखता है बिना किसी सीमा के। सबका भार उठाना , धरती हमें सिखाती है – जो सब कुछ सहती है बिना शिकायत के। निरंतरता और गति का ज्ञान , हवा सिखाती है – जो लगातार चलती है, रुकती नहीं। निश्छल प्रेम और जीवन का सौंदर्य , प्रकृति हमें सिखाती है – कैसे हर दिन, हर पल प्रेम से जीया ...
प्रकृति से सीखें जीवन के मूल मंत्र |Life Lessons from Nature – Trees, Mountains, Rivers & More
- Get link
- X
- Other Apps
💚 क्या आपने कभी सोचा है कि पेड़, पहाड़, नदी और आकाश हमें बिना बोले क्या सिखा जाते हैं? इस कविता में, हम प्रकृति के मौन संदेशों को महसूस करेंगे – जो हमें माफ़ करना, सहनशीलता, और निस्वार्थ प्रेम जैसे जीवन मूल्य सिखाते हैं।💚 एक पेड़ खड़ा था मेरे घर के आंगन में, सभी के लिए जगह है उसके दामन में। बहुत सारे पक्षियों का उसकी डालियों पर बसेरा होता है, उसके नीचे कुछ गायों का भी दिन और सवेरा होता है। कुछ बच्चे उसके नीचे खेला करते हैं, और कुछ तो उसकी डालियों से झूला करते हैं। पेड़ भी लहराता रहता ठंडी हवा में, जैसे कोई मौन गीत गा रहा हो सजीवता की धारा में। अगर आपको यह कविता पसंद आई हो, तो कमेंट में अपने विचार ज़रूर बताएं। शेयर करें इस खूबसूरत संदेश को अपने दोस्तों के साथ और जुड़ें हमारे साथ इस प्राकृतिक प्रेम यात्रा में।
आकाश का संदेश | Message from the Sky – एक प्रेरणादायक कविता
- Get link
- X
- Other Apps
क्या कभी आपने आकाश को ध्यान से देखा है? उसमें सिर्फ बादल, चाँद या तारे ही नहीं, बल्कि छिपे होते हैं अनगिनत संदेश, उम्मीदें और गहराइयाँ। प्रस्तुत है एक प्रेरणादायक कविता — "आकाश का संदेश"। जग समाहित हो जाए स्वयं में, इतना तुम विस्तार करो। रात्रि की ठंडक के पश्चात, सूर्य के तेज को सहन करने का सामर्थ्य रखो। एकत्रित करो जग हित की बूंदों को — रक्षा हेतु, जिस तरह मैं समंदर एकत्रित करने का सामर्थ्य रखता हूं। अगर इंद्रधनुष का सौन्दर्य स्वीकार करता हूं, तो काले मेघ को भी उर में स्थान देता हूं। जब लोग देखते हैं मुझे, मैं नई आशा की किरणें उनमें भर देता हूं। कहने को सिर्फ मैं आकाश हूं, किन्तु मैं: ईश्वर की दृष्टि, जगत का दुसाला, पक्षियों की आज़ादी, किसान की आस हूं। मैं आकाश हूं। अगर ये कविता आपके मन को छू गई हो, तो कृपया इसे अपने मित्रों से शेयर करें। नीचे कमेंट में बताएं – आपके लिए ‘आकाश’ क्या मायने रखता है?
सच्चा सुख: प्रकृति से जुड़ाव | True Joy Lies in Nature
- Get link
- X
- Other Apps
क्या हमने कभी सोचा है कि असली सुख कहाँ छुपा है? पेड़ों की छाँव में बैठने से जो अथाह सुख और शांति मिलती है, वह किसी महल में रहकर भी नहीं मिल सकती। नदियों के पास की शीतलता, कृत्रिम उपकरणों से उत्पन्न ठंडक से कहीं अधिक सुकून देती है। पक्षियों का मधुर स्वर किसी मनमोहक संगीत से कम नहीं होता। वृक्षों से अपने हाथों से तोड़कर खाए गए फल किसी महंगे स्वादिष्ट भोजन से भी अधिक संतोष देते हैं। आकाश में टिमटिमाते तारे हमारे द्वारा बनाए गए प्रकाश से कहीं अधिक सुंदर प्रतीत होते हैं। कभी-कभी आकाश में उभरता इंद्रधनुष किसी भी मनोरम दृश्य को पीछे छोड़ देता है। हमारे आसपास फुदकते पक्षी, और कहीं दूर से आती गायों की आवाज़ें किसी भी प्रकार के झगड़ों की आवाज़ों से बेहतर लगती हैं। प्रकृति ने हमें सब कुछ वास्तविक और नि:स्वार्थ रूप से दिया है, फिर भी हम कृत्रिमता की ओर भाग रहे हैं। हम वह खो रहे हैं जो हमारे पास पहले से मौजूद है, और उस मिथ्या सुख की ओर दौड़ रहे हैं जो मृगतृष्णा के समान है। अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो कृपया शेयर करें और कमेंट में अपने विचार जरूर बताएं।